एक सपना था आँखों में जाने कब और कैसे खो गया कही चीख चीख कर पुकारता था मुझे अब तो सिसकी तक सुनाई नहीं देती खो गया कहीं, शायद दुनियादारी के झमेले में एक सपना था आँखों में. Return to Main Page